ये कहानी शुरू होती है 2007 में, जब भारतीय रेलवे(Indian Railways) ने कुछ ज़मीन ली लुडियाना-पंजाब(Ludhiana-Punjab) रेलवे लाइन बनाने के लिए। दुर्भाग्य से इस्समें कुछ जमीन संपोरन सिंह(Sampooran Singh) की थी जो कटाना गांव में रहते थे।
सिंह को शुरू में 42 लाख प्राप्त हुवे उनकी जमीन के लिए लेकिन अनहोने 1.02 करोड़ मिलने का दावा किया। 2012 में केस दर्ज करने के बाद कोर्ट ने रेलवे को ऑर्डर दिया कि उनको बाकी के पैसे दे दिए और उसका मुआवजा भी प्रति एकड़ 50 लाख लगाया। लेकिन रेलवे ने बात नहीं मानी।
देर करने के लिए खातिर कोर्ट ने उन्हें स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन पुरस्कार दिया जोकी रोजाना अमृतसर और दिल्ली के बीच चलती है। इसके अलावा सिंह को लुधियाना के रेलवे स्टेशन मास्टर के कार्यालय का मालिक भी बताया गया।
संपोरन सिंह और उनके वकील लुधियाना रेलवे स्टेशन पहोछे कोर्ट के आदेश के साथ लेकिन कुछ भी कार्रवाई नहीं लीया यात्रियों को तकलीफ न हो इस्लिया। सिंह के वकील राकेश गांधी ने कहा कि अगर रेलवे शनिवार को मुआवजा नहीं देती तो अदालत ट्रेन की नीलामी करने का सोचेगी।
इसी तरह संपोरन सिंह एक किसान एक ट्रेन के मालिक बने।
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